नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने (Same Sex Marriage) मामले की सुनवाई के दौरान बुधवार को कहा कि भारतीय कानून वैवाहिक स्थिति की परवाह किये बिना जब अकेले व्यक्ति को भी बच्चा गोद लेने की अनुमति देते हैं तो फिर समलैंगिक विवाह के लिए विवाद क्यों। न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून मानता है कि ‘आदर्श परिवार’ के अपने जैविक संतान होने के अलावा भी कुछ विषम स्थितियां हो सकती हैं तो ऐसे में सोचना चाहिए।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान न्यायालय के समक्ष दलील दी कि लिंग की अवधारणा ‘परिवर्तनशील’ हो सकती है, लेकिन मां और मातृत्व नहीं बदल सकता है। आयोग ने विभिन्न कानूनों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि रखे जाने का उल्लेख करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को बताया कि यह कई फैसलों में कहा गया है कि बच्चे को गोद लेना मौलिक अधिकार नहीं है।

एनसीपीसीआर एवं अन्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट से कहा, ‘हमारे कानूनों की संपूर्ण संरचना स्वाभाविक रूप से विषमलैंगिक व्यक्तियों से पैदा हुए बच्चों के हितों की रक्षा और कल्याण से संबंधित है और सरकार विषमलैंगिकों तथा समलैंगिकों के साथ अलग-अलग व्यवहार करने में न्यायसंगत है।’ भाटी ने कहा कि बच्चों का कल्याण सर्वोपरि है। पीठ ने कहा कि यह तथ्य सही है कि एक बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि देश का कानून विभिन्न कारणों से बच्चे को गोद लेने की अनुमति प्रदान करता है और ‘यहां तक कि एक अकेला व्यक्ति भी बच्चा गोद ले सकता है। ऐसे पुरुष या महिला, एकल यौन संबंध में हो सकते हैं। यदि आप संतानोत्पत्ति में सक्षम हैं तब भी आप बच्चा गोद ले सकते हैं। जैविक संतानोत्पत्ति की कोई अनिवार्यता नहीं है।’ इसपर पीठ ने कहा कि कानून मानता है कि ‘आदर्श परिवार’ के अपने जैविक संतान होने के अलावा भी कुछ स्थितियां हो सकती हैं। शीर्ष अदालत ने पूछा, ‘विषमलैंगिक विवाह के दौरान यदि पति या पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो ऐसी सूरत में क्या होगा।’ समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर पीठ के समक्ष नौवें दिन सुनवाई जारी रही।

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