पुष्प कमल दहल बने नेपाल के नए प्रधानमंत्री

नई दिल्ली। आखिरकार लंबी खींचतान के बाद नेपाल को अपना नया प्रधानमंत्री मिल गया है। पुष्प कमल दहल नेपाल के नए प्रधानमंत्री बने हैं। हालांकि, इस पद के लिए जारी रेस में शेर बहादुर देउबा का नाम सबसे आगे था, लेकिन ऐन वक्त में पुष्प कमल दहल बाजी मारकर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने में सफल रहे। अब जल्द ही वे सरकार गठन की प्रक्रियाओं का आगाज करेंगे। जिसमें खबर है कि कई मौजूदा मंत्रियों का पत्ता कट सकता है, तो कई नए चेहरों को जगह दी जा सकती है। गत दिनों जिस तरह नेपाल में राजनीतिक भूचाल देखने को मिला और इस भूचाल के बीच जिस तरह देउबा ने राष्ट्रपति से दो-दो मर्तबा मुलाकात की थी, उसे देखकर यह माना जा रहा था कि वो ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजान होंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

हालांकि, इससे पहले देश में जारी सियासी घमासान को विराम देने के लिए विधिवत रूप से बैठक का आयोजन किया गया था, जिसमें नेपाल के कई बड़े राजनेता शामिल हुए थे। इस बैठक में पुष्प कमल दहल भी शामिल हुए, लेकिन बाद में जिस तरह खफा होकर उन्होंने बैठक का बहिष्कार किया, उसके बाद जो कुछ भी हुआ है, वो जगजाहिर है। बैठक के बाद उन्होंने गठबंधन से आउट होने का फैसला कर लिया था, जिसके बाद उन्हें मनाने की प्रक्रिया भी शुरू हुई और अब यह प्रक्रिया सफल मानी जा रही है। नेपाल में जारी इन सभी सियासी उठापटक के बीच उन्होंने केपी ओली शर्मा से भी बात की और सभी विधायकों के हस्ताक्षरयुक्त परिपत्र भी राष्ट्रपति को सौंपा।

बताया जा रहा है कि पांच साल के कार्यकाल के दौरान ढाई वर्ष पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होंगे और बाका का आधे साल केपी ओली प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होंगे। ऐसी स्थिति में नेपाल में राजनीतिक स्थिरता बरकरार रहेगी की नहीं। यह भविष्य में गर्भ में निहित है। बता दें कि अगर केपी ओली देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए  तो ऐसी स्थिति में भारत के साथ चीन के रिश्ते कैसे रहते हैं। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। ध्यान रहे, इससे पूर्व जब केपी ओली ने नेपाल की कमान संभाली थी, तो उन्होंने भारत को हमेशा ही नाराज ही किया था। केपी ओली का चीन के प्रति झुकाव और लगाव जगजाहिर है। उनके कार्यकाल के दौरान भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद का भी जन्म हुआ। हालांकि, गत दिनों नेपाल-चीन के बीच सीमा विवाद परिलक्षित हुआ था, लेकिन केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे यह कहकर विराम दे दिया था कि नेपाल- भारत भाई-भाई हैं।

अगर इस बीच कोई विवाद सामने आता है, तो वार्ता की मेज पर बैठकर इनका निस्तारण कर लिया जाएगा। ध्यान रहे, साल 2020 में नेपाल की ओर एक नक्शा जारी किया गया था, जिसमें उत्तराखंड के तीन स्थानों को उस नक्शे में प्रदर्शित किया गया था, जिसे लेकर अब विवादों का सिलसिला  शुरू हो चुका है और यह सबकुछ केपी ओली शर्मा के कार्यकाल में देखने को मिला था, जिसकी वजह उनका चीन परस्ती होना बताया गया था। इतना ही नहीं, अपने कार्यकाल के दौरान केपी ओली कई मर्तबा चीनी राष्ट्रपति से भी मुलाकात कर चुके थे। कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि चीन ने नेपाल को हमेशा ही भारत के खिलाफ उकसाने की कोशिश की। अब जब पुष्प कमल दहल नेपाल की गद्दी पर विरामजान हो चुके हैं, तो भारत के नेपाल संग रिश्तें कैसे रहते हैं। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।

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