कर्नाटक में हलाल मीट को लेकर क्यों मचा है बवाल..?

नई दिल्ली। कर्नाटक दक्षिण भारत के उन राज्यों में से एक है जहां हिन्दू बहुलता में पाए जाते हैं। यहां हिंदू धर्म को प्रमुखता से माना जाता है। इस बीच धार्मिक मुद्दे पर कर्नाटक में बसवराज बोम्मई सरकार हलाल मीट के खिलाफ विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। इसका प्रस्ताव बनकर तैयार हो गया है। कहा जा रहा है कि सोमवार से शुरू हो रहे कर्नाटक के शीतकालीन सदन में यह विधेयक पेश किया जा सकता है। इसे लेकर हंगामे की भी उम्मीद है।

हलाल मीट को लेकर बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने आ सकती है। कर्नाटक में हलाल मीट के खिलाफ विधेयक को अगले साल होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 से जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दों और लड़खड़ाते नागरिक बुनियादी ढांचे के बावजूद बोम्मई सरकार कांग्रेस पार्टी से लड़ने के लिए हिंदुत्व कार्ड चला रही है। कर्नाटक, दक्षिण भारत में एक प्रमुख इकनॉमिक पावर है, इसलिए देश के दोनों प्रमुख पोलिटिकल पार्टीज के लिए यह बेहद जरूरी है।

आपको बता दें कि ऐसा नहीं है कि पहली बार कोई इस तरह का मुद्दा में चर्चा में आया हो बल्कि हिंदुत्व रुख के हिस्से के रूप में कर्नाटक में बीजेपी सरकार ने पहले से ही गोहत्या और धर्मातरण पर रोक लगाने वाले कानून पेश किए हैं। बीजेपी के कदमों को राज्य के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में धर्मनिरपेक्ष दल संदेह के साथ देख रहे हैं। कर्नाटक में मुस्लिम आबादी का 14 प्रतिशत हिस्सा है और तटीय इलाकों के साथ-साथ राज्य के अन्य क्षेत्रों में में भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव है। यह राज्य दक्षिणपंथी हिंदू और मुस्लिम राजनीति के लिए एक उपजाऊ जगह रहा है।

कर्नाटक में जो हलाल मीट को लेकर विवाद खड़ा हुआ है वो ये है कि परम्पराओं के अनुसार मुसलमान जानवर को मक्का की तरफ मुंह करके उसके गले की नस को काटते हैं। इस दौरान वह अल्लाह का नाम लेते हैं। उसे तड़पा-तड़पाकर मारते हैं। मुसलमान हलाल मीट को ही खाने योग्य मानते हैं। उनमें झटका मीट खाने की मनाही है। हिंदुओं में जानवर की बलि झटके में दी जाती है। माना जाता है कि ईश्वर का नाम लेकर एक ही वार में जानवर की गर्दन धड़ से अलग कर दी जाती है। इससे जानवर को कम दर्द होता है। इसे बलि देना भी कहा जाता है।

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