उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश नगर निकायों में महापौर व अध्यक्षों काकार्यकाल खत्म होने की स्थिति में प्रशासकों की नियुक्ति को लेकर ऊहापोह की स्थिति को समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने क्रमवार निकायों में प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने के निर्देश दे दिए हैं। प्रदेश सरकार ने कहा है कि कार्यकाल खत्म होते ही प्रशासक राज लागू हो जाएगा। मेयर व अध्यक्षों का कार्यकाल जनवरी के अंत तक समाप्त हो रहा है। जैसे-जैसे कार्यकाल खत्म होगा नगर निगम में नगर आयुक्त और पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारियों के पास अधिकार आ जाएगा।

अधिनियम और कोर्ट से जारी आदेश पर होगी आगे की कार्रवाई

प्रमुख सचिव नगर विकास ने इसके साथ कहा है कि अधिनियम में दी गई व्यवस्था और हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में दाखिल याचिका संदीप मेहरोत्रा व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सरकार में पांच दिसंबर 2011 को पारित आदेश का अनुपालन होगा। जिसमें नए बोर्ड के गठन के पूर्व जिन निकाय का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, वहां अंतरिम व्यवस्था प्रशासनिक अधिकार देकर सुनिश्चित कराई जाएगी।

पालिका परिषद व नगर पंचायतों में खातों का संचालन अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारियों के संयुक्त हस्ताक्षर से होता है। अध्यक्ष के न रहने पर यह काम अधिशासी अधिकारी व केंद्रीयत सेवा के वरिष्ठतम लेखा अधिकारी संयुक्त हस्ताक्षर से करेंगे। केंद्रीय सेवा के अधिकारी की तैनाती न होने की स्थिति में वहां लेखा का काम देखने वाले कर्मी को दिया जाएगा। अधिशासी अधिकारी कर्मचारी को नामित करेगा। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि संयुक्त हस्ताक्षर की इस व्यवस्था के तहत ही नगद निकाला जाएगा।

जिलाधिकारी को भेजे गए दिशा-निर्देश

प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात ने बतााय कि शासनादेश सभी जिलाधिकारी को भेज दिया गया है। इसमें कहा गया है कि नगर निकायों का सामान्य निर्वाचन जनवरी 2023 के पहले और दूसरे सप्ताह में कराया जाना प्रस्तावित है। उत्तर प्रदेश नगर पालिका परिषद अधिनियम-1916 और उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 में निकायों के बोर्ड का कार्यकाल पांच साल के लिए निर्धारित है।

सलाहकार की भूमिका में रहेगा बोर्ड

अमृत अभिजात के मुताबिक प्रशासक बैठाए जाने के दौरान बोर्ड की भूमिका सलाहकार के तौर पर होगी। वे बहुमत के आधार पर अधिशासी अधिकारी या नगर आयुक्त को परामर्श दे सकेंगे, जोकि बाध्यकारी नहीं होंगे। हालांकि निकायों की कार्यकारिणी समिति के पास नागरिक सुविधाओं का पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी होगी। इसके लिए  कार्यकारिणी समिति के सदस्यों को कोई पारिश्रमिक, मानदेय या भत्ता नहीं दिया जाएगा। नगर पालिका परिषदों व नगर पंचायतों के संबंध में यह दायित्व निकाय बोर्ड के पास होगा।

खातों का संचालन ईओ और लेखाकार करेंगे

नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में खातों का संचालन अध्यक्ष व अधिशासी अधिकारी के दस्तखत से होता है। अध्यक्ष के न रहने पर यह काम अधिशासी अधिकारी व केंद्रीयत सेवा के वरिष्ठतम लेखा अधिकारी संयुक्त हस्ताक्षर से करेंगे। केंद्रीयत सेवा के अधिकारी की तैनाती न होने की स्थिति में वहां लेखा का काम देखने वाले कर्मी को दिया जाएगा। अधिशासी अधिकारी कर्मचारी को नामित करेगा। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि संयुक्त हस्ताक्षर की इस व्यवस्था के तहत ही नगद निकाला जाएगा। चेक भी सभी औपचारिकता पूरी करने के बाद दिए जाएंगे।

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