नई दिल्ली। भारत ने 1 दिसंबर को जी20 की अध्यक्षता लेकर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी ली है। जहां ये एक तरफ बड़ी जिम्मेदारी है, तो वहीं दूसरी तरफ यह हमारे देश के लिए गर्व की बात है। सरकार ने जी-20 के लिए जोरो शोरो पर विशेष तैयारियां की। इसी के साथ इस अवसर पर देश भर में 100 से अधिक स्मारकों पर G20 लोगो को दिखाया गया। जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक के सभी 100 स्मारक पर चार चांद लगा दिए और समारक जी20 के लोगो के रंग में रंग गए। लोगो था “वसुधैव कुटुम्बकम“ या “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” ये सिर्फ एक लोगो या थीम नहीं है बल्कि ये एक संदेश है, ये एक भावना है, जो हमारी रगों में है। इसके माध्यम से भारत दुनिया में एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा।
अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत जी20 की अध्यक्षता के माध्यम से दुनिया के उभरते और शक्तिशाली देशों के सामने अपने प्राचीन और प्रभावशाली ज्ञान का प्रदर्शन कर पाएगा? तो जबाव है हां, बिल्कुल और इसके लिए भारत पूरी तरह से तैयार है। पूरे भारत में जी-20 की लगभग 200 बैठकों की योजना है। इनमें से कुछ बैठकों की मेजबानी करने के लिए देश के उन हिस्सों का चयन किया गया है जिनके बारे में लोगों को बेहत कम जानकारी है।
इसके पीछे पीएम मोदी का उद्देश्य है कि सभी जिलों और ब्लॉक को जी20 से जोड़ा जाए और पीएम मोदी के विजन को जनभागीदारी के जरिए जन-जन तक संदेश पहुंचाया जाए। इस प्रकार यह मानवीय परिस्थितियों में उन हालिया परिवर्तनों को ध्यान में रखता है, जिनकी सराहना करने में हम सामूहिक रूप से असफल रहे हैं।
शुरुआती और मंत्रीस्तरीय बैठकों के बाद, जी-20 शिखर सम्मेलन की भव्य बैठक होगी। इसमें पी-5 देशों के अलावा अन्य देशों के नेता अगले सितंबर नई दिल्ली में हिस्सा लेंगे। भारत ने इंडोनेशिया से यह कमान संभाली है, जिसे यूक्रेन युद्ध पर मतभेदों की वजह से बैठक निर्धारित करने और उसमें पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित कराने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। प्रतीकवाद और रसद के मामले में समन्वय को छोड़ दें, तो सरकार को जी-20 का समेकित एजेंडा हासिल करना आसान नहीं है।
अधिकारियों का कहना है कि वे आतंकवाद, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और वैश्विक एकता पर इसे केंद्रित करेंगे। अपने एक संपादकीय में, पीएम मोदी ने कहा कि भारत “सामूहिक निर्णय लेने“ की अपनी परंपरा के माध्यम से जी-20 एजेंडे को आगे बढ़ाएगा। यह उसी तरह है जैसे कि भारत में किसी विषय पर बनने वाली राष्ट्रीय सहमति, इसमें “… लाखों मुक्त आवाज़ों को एक धुन में पिरोया जाएगा”।
सरकार को ये भी देखना चाहिए कि ज्यादा शक्तियां ज्यादा जिम्मेदारी भी लेकर आती है। देखा जाए तो अभी भारत खुद आर्थिक संकट और सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव से घिरा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि प्रतिभाशाली युवाओं की रचनात्मक प्रतिभा का पोषण करें। हमारी आने वाली पीढ़ियों में उम्मीद जगाने के लिए बड़े पैमाने पर विनाश के हथियारों से पैदा होने वाले जोखिमों को कम करना होगा और वैश्विक सुरक्षा बढ़ाने पर सर्वाधिक शक्तिशाली देशों के बीच एक ईमानदार बातचीत को प्रोत्साहन प्रदान करना होगा।
हालांकि, भारत ने जो जिम्मेदारी ली है, उसमें हमें भी बराबर अपना भाग देना होगा। भारत का जी-20 एजेंडा कुछ अलग होगा, ये एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा। हमें भारत की जी-20 अध्यक्षता को संरक्षण, सद्भाव और उम्मीद की अध्यक्षता बनाना होगा और उसके लिए हम सबको एकजुट होना पड़ेगा।