गुजरात - हिमाचल में किसके सिर सजेगा ताज और कौन होगा इस रेस से बाहर ?

नई दिल्ली। आज दिल्ली एमसीडी का रिजल्ट आने वाला है और इसी के साथ साफ हो जाएगा कि कौन सत्ता पर काबिज होगा और किसको इससे बाहर जाना पड़ेगा। आज के बाद कल यानि 8 दिसंबर को त्रिकोणीय मुकाबले का परिणाम भी आने वाला है। इस दिन चुनाव आयोग गुजरात समेत हिमाचल विधानसभा चुनाव का रिजल्ट भी घोषित करेगी। हालांकि गुजरात विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 18 फरवरी को तो वहीं हिमाचल का कार्यकाल जनवरी में समाप्त हो रहा है। जहां गुजरात के चुनाव दो चरणों में 1 और 5 दिसम्बर को हुए तो वहीं हिमाचल के चुनाव एक ही चरण में 12 नवम्बर को हुए थे। चुनाव की घोषणा में भले एक पखवाड़े का अंतर रहा था, लेकिन नतीजे दोनों राज्यों में एक ही दिन 8 दिसंबर को घोषित होंगे। वोट के लिए सभी पार्टी राजनीतिक दांव-पेंच लगाते दिखे।

साथ ही कभी महंगाई को लेकर तो कभी पेट्रोल और डीजल के दामों को लेकर किसी न किसी तरह केंद्र पर निशाना साधती रही। विवादित बयानों से लेकर सोशल मीडिया पर भी सभी एक-दूसरे को चुनौती देते दिखे। लेकिन गुजरात में आम आदमी पार्टी की वजह से इस मुकाबले ने त्रिकोणीय रूप ले लिया, जिसमें सबकी रुचि दिखती नजर आ रही है। एक तरफ ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल गुजरातियों को अयोध्या की मुफ्त तीर्थयात्रा कराने का वादा किया तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं।

गुजरात विधानसभा को राजनीतिक दृष्टि से देखें तो गुजरात का भारत की राजनीति में विशिष्ट स्थान रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं यहां के 12 वर्ष तक मुख्यमन्त्री रहे हैं। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आक्रामक रवैया अपनाया था और भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। जिसमें 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की 99 व कांग्रेस की 77 सीटें आयी थीं। इसी को देखते हुए यह कहा जा रहा था कि यदि इस बार कांग्रेस सही रणनीति अपनाए तो वह भाजपा के लिए चुनौती बन सकती है। इस बार भी असली मुकाबला इन्हीं दो पार्टियों के बीच रहने की उम्मीद जताई जा रही है लेकिन आम आदमी पार्टी की वजह से यह मुकाबला त्रिकोणीय हो गया।

 

हालांकि आप पार्टी कितने ही दावे कर ले यहां की सत्ता हथियाने की, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के बीच वह कहीं गुम सी नजर आई। आप पार्टी को उम्मीद है कि पंजाब के बाद वह गुजरात में भी राज करेगी। लेकिन देखा जाए तो यहां अभी भी असली मुकाबला बीजेपी और काग्रेंस के बीच ही दिखता नजर आ रहा है। तो इस कारण आम आदमी पार्टी का पलड़ा हल्का भी पड़ सकता है। लेकिन ऐसा भी माना गया कि कई जगह चुनाव प्रचार में भाजपा व आम आदमी पार्टी ही आगे चल रहे थे। कांग्रेस पार्टी का मध्यम गति से चलना उसकी चाल भी हो सकता है।

 

कांग्रेस का जोर इस बार रैलियों और आम सभाओं के बजाय डोर टु डोर कैंपेन पर है और उसका दावा है कि यह फलित होगा। क्योंकि वह इस बार जमीनी स्तर पर उतरकर गांव और ग्रामीण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में रही। जिस कारण कहा जा रहा है कि कांग्रेस नए ढंग से भाजपा को चुनौती देने के लिए तैयार हो रही है। साथ ही यह भी मानना होगा कि चाहे आप पार्टी सत्ता पर काबिज हो या ना हो लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के वोट जरूर बांट दिए है। खैर कुछ भी हो परिणाम देखने लायक होगा।

 

बीजेपी मोरबी त्रासदी जिसमें एक झुला पुल के टूटने और उससे हुई मौतों के कारण भी लोगों की नजरों में रही और इस त्रासदी ने बीजेपी को कुछ कमजोर किया। जाहिर है, विपक्ष ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन अपने वर्चस्व और दमदार छवि के कारण उसने सभी का जमकर सामना किया। इस राज्य की राजनीति गहरे तौर पर हिंदू प्रतीकवाद और अक्सर खुले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से प्रेरित होती है।

 

इन सबको देखते हुए लगता है कि गुजरात चुनावों का महत्व केवल राष्ट्रीय लोकसभा चुनावों के लिए ही नहीं है बल्कि अगले वर्ष 2023 में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों के लिए भी है। पिछले 2017 के चुनावों में इनमें से तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस पार्टी विजयी रही थी और शुरू में इसी की इन तीनों राज्यों में सरकारें भी गठित हुई थीं। लेकिन कालान्तर में मध्य प्रदेश में दल बदल की इस्तीफा ‘टेक्नोलोजी’ की वजह से यहां सत्ता पलट गई। लेकिन गुजरात के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता है तो हिमाचल में भी कुछ यही हाल है।

गुजरात विधानसभा चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इन दोनों नेताओं की राजनीतिक साख से जोड़कर देखा जाता है। पिछले ढाई दशक से भी ज्यादा समय से बीजेपी ने गुजरात को अपना ऐसा अभेद्य किला बना भी रखा है, जहां विपक्ष चाहकर भी सेंध नहीं लगा पा रहा है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस इस लक्ष्य के काफी नजदीक पहुंच गई थी। लेकिन बीजेपी के दीवार को गिराना फिलहाल मुश्किल होता दिख रहा है।

बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार है उसकी मजबूत इलेक्शन मशीनरी और दूसरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वप्रिय छवि। इन दोनों का कोई तोड़ विपक्ष अभी तक नहीं निकाल पाया है। गुजरात में इस बार क्या होता है, यह 8 दिसंबर को साफ होगा। तो काफी दिलचस्प होगा यह देखना कि किसके सिर सजेगा ताज और कौन होगा इस रेस से पार?

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