बसपा सुप्रीमो मायावती

नई दिल्ली। बसपा सुप्रीमो व पूर्व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री मायावती को भाजपा ने इस बार बड़ा झटका दिया हैं। निकाय चुनाव से पहले ही बसपा के कई बड़े नेताओं ने मायावती का दमन छोड़ दिया हैं। बताया जा रहा हैं कि मंगलवार को भाजपा के तिलपता गांव स्थित पार्टी कार्यालय पर सभी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री व स्थानीय सांसद डा.महेश शर्मा व जिलाध्यक्ष विजय भाटी की मौजूदगी में सदस्यता ग्रहण की।

कहा जा रहा हैं कि इस शपथ ग्रहण समारोह में सपा व रालोद के भी कुछ नेता शामिल हैं। दादरी विधायक तेजपाल नागर भी मौजूद रहे। बसपा के एक अन्य बड़े नेता व संगठन में जिला उपाध्यक्ष रहे सतपाल नागर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। जहांगीपुर के चेयरमैन जयप्रकाश शर्मा, बिलासपुर नपा के पूर्व चेयरमैन सुदेश के पति कुक्की नागर, हरेंद्र शर्मा, दनकौर की पूर्व चेयरमैन राजवती देवी, जेवर के पूर्व चेयरमैन धर्मेंद्र अग्रवाल, जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी रहे दीपक सिंह, व्यापार मंडल के अध्यक्ष रंजनीकांत, दनकौर के अतुल गर्ग, सभासद ललित गौतम, ओमप्रकाश राजपूत, राजपाल वाल्मीकि, राहुल, विकास, रेखा सिंघल, अमित कुमार, भूपेंद्र सिंघल, नलनीश गोयल भी भाजपा में शामिल हो गए।

सूत्रों की माने तो आगे आने वाले समय में बसपा के अन्य नेताओ के भाजपा या अन्य पार्टी में शामिल होने चर्चा ज़ोरो पर हैं जिसमे बसपा के पूर्व विधायक सतवीर गुर्जर, पूर्व मंत्री अजीत पाल व जिला पंचायत के पूर्व चेयरमैन रविंद्र भाटी शामिल हैं। नेताओं के बसपा का साथ छोड़ने से क्या सुप्रीमो मायावती और पार्टी पर इसका काफी असर पड़ेगा।

बसपा में दल बदल का इतिहास :

साल 2017 में बसपा उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में सत्ता की प्रबल दावेदार मानी जा रही थी हुए उस वक्त भी नेताओ की दल बदल राजनीती ने ‘विजयी होने वाले दल’ के रूप में देखी जा रही बसपा को नुकसान पहुंचाया था। 1984 में बसपा के गठन के बाद से अब तक, पार्टी से अनेक बड़े नेताओं ने या तो इस्तीफा दिया है या निकाले गए हैं।

 

  • 1990 के दशक में सबसे पहले कांशीराम के बेहद करीबी माने जाने वाले बसपा के महत्वपूर्ण नेता राज बहादुर और जंग बहादुर ने पार्टी छोड़ी थी। 1994 में बसपा-सपा गठबंधन सरकार में बसपा कोटे से कैबिनेट मंत्री रहे और कांशीराम के अन्य करीबी माने जाने वाले दिग्गज नेता डॉक्टर मसूद ने पार्टी छोड़ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई थी लेकिन वर्तमान में वो पार्टी राजनैतिक गलियारों में कही गम सी गई हैं।
  • 1995 में सोने लाल पटेल बसपा से अलग हुए और उन्होंने ‘अपना दल’ नाम की पार्टी का गठन किया।
    वही 2001 में आरके चैधरी ने बसपा से अलग होकर राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाई। लेकिन साल 2013 में 11 साल बाद आरके चैधरी बसपा में एक बार फिर शामिल हुए लेकिन फिर साल 2016 एक बार फिर से पार्टी छोड़ दी वो भी उस वक्त जब 2017 में चुनाव नज़दीक थे।
  • यह कहना कि बसपा को इस दल बदल राजनीति से नुकसान नहीं पहुंचेगा ये विचार करने योग्य हैं। अगर मायावती की माने तो वे कहती भी हैं कि ‘हम समाज (जाति) के साथ गठबंधन करते हैं, न कि राजनीतिक दलों और बिचौलिए नेताओं के साथ ‘इसलिए ज़रूरी है कि उनकी पार्टी यानि कि बसपा से जुड़ी घटनाओं का विश्लेषण दूसरे दलों की तरह न किया जाए।

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